निवेश (इन्वेस्टमेंट) के बारे में -

निवेश, मोटे तौर पर, सकारात्मक रिटर्न (लाभ) उत्पन्न करने के लिए किसी प्रकार की परिसंपत्ति (एसेट) या वस्तु (जैसे- सोना) में किसी परियोजना (प्रोजेक्ट) या उपक्रम के तहत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कुछ समय के लिए पैसा लगाना है। यहाँ सकारात्मक लाभ से तात्पर्य लगाई गई पूंजी की मूलयवृद्धि से है। परियोजना या उपक्रम से तात्पर्य किसी स्कीम (जैसे – ULIP, म्यूच्यूअल फण्ड आदि ) या सरकारी प्रतिभूतियां (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज) से है।
निवेश का एक प्रत्यक्ष रूप अपने व्यवसाय को शुरू करना भी हो सकता है। या किसी अचल संपत्ति (रियल एस्टेट) को भविष्य में अधिक कीमत पर बेचने के उद्देश्य से या किराये की आय उत्पन्न करने के उद्देश्य से भी निवेश किया जा सकता है।
शेयर मार्केट में लम्बे समय (लगभग 3 वर्ष या उससे अधिक) तक उचित जानकारी और जोखिम परिमापन (रिस्क पैरामीटर) को ध्यान में रखकर पैसा लगाना एक अच्छे निवेश की श्रेणी में आता है। यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि स्टॉक्स (शेयर मार्केट) में कम समय (लगभग 8 दिन या उससे कम) के लिए निवेश को ट्रेडिंग कहते हैं। यह अधिक जोखिम भरा और अधिकतर घाटे का सौदा ही साबित होता है। ट्रेडिंग मेरी राय में एक जुआ की तरह है। इससे बचना चाहिए और एक परिगणित (कैलकुलेटेड) जानकारी और रिस्क को ध्यान में रखकर ही शेयर मार्केट में निवेश करना चाहिए।
निवेश वर्तमान समय की आवश्यकता है व्यक्तिगत रूप से भी और राष्ट्रवादी होने के सन्दर्भ में भी। ऐसा कहना इसलिए उचित है क्यूंकि बिना निवेश के केवल बचत करके मंहगाई को नहीं हराया जा सकता है और निवेश करने से आप अपने बचत के पैसों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में डाल रहे हैं। जिससे आप अपने पैसों की मूल्य वृद्धि के साथ राष्ट्र -निर्माण और समाज-निर्माण में भी सहयोग दे रहे हैं।

निवेश करने के कुछ तरीकों (टाइप्स) और उनके जोखिम कारणों (रिस्क फैक्टर्स) को जानते हैं –

1. यूलिप (ULIP) / यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान -

यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) एक बहुआयामी उत्पाद है जो जीवन बीमा कवरेज और इक्विटी या बॉन्ड में निवेश दोनों सुविधाएं प्रदान करता है। इसमें जीवन बीमा कवरेज का मतलब दुर्घटनात्मक मृत्यु या शारीरिक स्थायी क्षति के बचाव से है यदि पॉलिसीधारक की किसी दुर्घटना में मृत्यु या स्थायी शारीरिक क्षति हो जाती है, तो बीमा कंपनी पॉलिसीधारक या उसके नामित (नॉमिनी) व्यक्ति को पालिसी की शर्तिया राशि बिना किसी प्रीमियम के भुगतान करेगी। उदहारण के लिए LIC की ज्यादातर पॉलिसियां यूलिप के अंतर्गत आती हैं। बाजार में और भी कंपनियां (जैसे- मैक्स लाइफ , HDFC लाइफ, भारती-अक्सा आदि) अपने यूलिप प्लान्स ग्राहकों को बेचती हैं। यूलिप में पॉलिसीधारकों को नियमित प्रीमियम भुगतान करने की आवश्यकता होती है। प्रीमियम भुगतान के लिए पॉलिसीधारक अलग – अलग अपनी सुविधानुसार समयावधि (मासिक, वार्षिक आदि) चुन सकता है। दिए गए प्रीमियम का कुछ हिस्सा जीवन बीमा कवरेज में जाता है और शेष हिस्सा अन्य पॉलिसीधारकों की संपत्ति के साथ जमा किया जाता है और इसे इक्विटी, बॉन्ड या दोनों का संयोजन (इक्विटी+बॉन्ड) में निवेश किया जाता है। अतः इसमें निवेश करते समय लॉक-इन अवधि, जोखिम और मैच्युरिटी अमाउंट से समबन्धित नियम व शर्तें और अपनी जरुरत का खाश ध्यान रखें।

2. म्यूच्यूअल फण्ड (Mutual Fund)

म्यूचुअल फंड (पारस्परिक निधि) एक पेशेवर फंड मैनेजर द्वारा उचित ढंग से धन को निवेश करने की एक वित्तीय व्यवस्था है। इसमें निवेशकों से पैसे एकत्रित करके इक्विटी (शेयर मार्केट), बांड्स, शासकीय-प्रतिभूतियां या अन्य अल्प-कलिक ऋण-प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है। म्यूचुअल फंड की संयुक्त होल्डिंग्स को इसके पोर्टफोलियो के रूप में जाना जाता है। और इस सामूहिक निवेश से उत्पन्न आय/लाभ को किसी योजना के “नेट एसेट वैल्यू” या NAV की गणना करके, लागू खर्चों और लेवी में कटौती के बाद निवेशकों के बीच आनुपातिक रूप से वितरित किया जाता है।

जैसा कि इसमें फण्ड मैनेजर द्वारा बड़ी मात्रा में धन निवेश किया जाता है , अतः उसकी भूमिका अहम है। म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने से पहले फण्ड मैनेजर और सम्बंधित संस्था के बारे में उचित जानकारी जैसे कि- पिछले सालों का ट्रैक रिकॉर्ड, व्यावसायिक योग्यता आदि के बारे में जान लेना चाहिए।

SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) मान्यता प्राप्त AMCs (परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों) का संगठन AMFI के नाम से जाना जाता है। AMFI का लक्ष्य भारत में नैतिक और व्यावसायिक मानकों में सुधार करके भारत में म्यूच्यूअल फण्ड बाजार को नियंत्रित, कार्यान्वयन और निवेशक अनुकूल बनाना है।

म्यूच्यूअल फंड्स एक सही विकल्प हो सकता है –
1. जो कम मात्रा में एक निश्चित राशि धीरे-धीरे लंबे समय तक निवेश करना चाहते हैं। जिसे आम भाषा में SIP कहा जाता है।
2. जो अधिक मात्रा में इकट्ठी धन राशि को निवेश करना चाहते हैं लेकिन उनके पास समय या रुझान की कमी है।
3. जिनके पास शेयर बाजार में सीधे निवेश करने का जरुरी ज्ञान या अनुभव का अभाव हो।
4. जो अपने निवेश में विविधता (डायवर्सिफिकेशन) चाहते हैं।

जोखिम (रिस्क)-
म्यूच्यूअल फण्ड सामाजि, राष्ट्रिय, अंतर्राष्ट्रीय (आज के समय में) बाजार और गतिविधियों से सीधे सम्बन्ध रखता है। अतः इसका असर सीधे निवेश वृद्धि पर सकारात्मक या नकारात्मक रूप से हो सकता है। क्योंकि फण्ड द्वारा रखी गयी प्रतिभूतिओं (सिक्योरिटीज) का मूल्य कम या ज्यादा हो सकता है , बाजार की स्थितियां बदलने पर लाभांश या ब्याज का भुगतान भी बदल सकता है। इसका सीधा मतलब यह है की निवेश की गयी मूल राशि में भी कमी आ सकती है।

किसी फण्ड का पिछला प्रदर्शन यह गारंटी नहीं देता कि भविष्य में भी वह उसी अनुपात में रिटर्न देगा। किन्तु पिछला प्रदर्शन आपको फण्ड के स्थिर या अस्थिर सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम के बारे में जानकारी देता है। फण्ड का पिछला प्रदर्शन जितना अधिक अस्थिर होगा , निवेश जोखिम उतना अधिक होगा।

3. स्टॉक्स / इक्विटीज (शेयर मार्केट)

अक्सर कम्पनियाँ आंशिक (कुछ मात्रा में) स्वामित्व (ओनरशिप) बेचने के बदले बाजार से पैसा इकठ्ठा करतीं हैं, इसे शेयर बाजार में इक्विटी या स्टॉक्स में निवेश करना कहते हैं। यह सामान्यतः दूसरे निवेश विकल्पों से ज्यादा जोखिम भरा हो सकता है। दूसरी ओर कंपनियां जब बॉन्ड के माध्यम से पैसा इकठ्ठा करतीं हैं तो इसे ऋण के रूप में देखा है।
ऋण के रूप में निवेश एक पारम्परिक, इक्विटी के मुकाबले कम जोखिम भरा और कम रिटर्न देने वाला विकल्प है। ध्यान दें कि यह ऋण किसी स्थानीय प्राधिकरण निकाय (भारत के केस में – SEBI) द्वारा मान्यता प्राप्त कंपनी के द्वारा जारी किये गए बांड के एवज में हो। 

शेयर बाजार में इक्विटी या स्टॉक्स में निवेश करने के लिए सबसे पहले एक डीमैट अकाउंट होना चाहिए। भारत में बहुत सीं कम्पनियाँ SEBI रजिस्टर्ड स्टॉक ब्रोकर के रूप में कार्य कर रहीं हैं (उदाहरण के लिए – HDFC सिक्योरिटीज , SBI सिक्योरिटीज , मोतीलाल ओसवाल, आदि) । डीमैट अकाउंट आपको शेयर बाजार में SEBI के अंतर्गत सूचीबद्ध कंपनियों के स्टॉक्स को खरीदने और बेचने की सहूलियत प्रदान करता है। भारत में NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) और BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) दो सबसे ज्यादा ट्रेड (शेयर्स को खरीदना या बेचना) करने वाले बाजार हैं। ध्यान दें कि जिस स्टॉक ब्रोकर से डीमैट अकॉउंट खोला जाये,वह SEBI रजिस्टर्ड होना ही चाहिए।
डीमैट अकाउंट में पैसों का लेनदेन करने के लिए भारत के किसी राष्ट्रीय स्तर के बैंक का बैंक अकाउंट जोड़ना होता है। यह साधारण प्रक्रिया आप खुद से भी कर सकते हैं।अन्यथा आप स्टॉक ब्रोकर की सहायता भी ले सकते हैं।

स्टॉक्स या इक्विटी में निवेश करने के फायदे –
1. 7 वर्ष और उससे अधिक समय में संपत्ति बनाने के लिए इक्विटी सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है।
2. आप विभिन्न शेयरों में निवेश करके जोखिम को विभाजित कर सकते हैं।
3. FD और बॉन्ड की तुलना में इक्विटी पर कम टैक्स लगता है।
4. कभी भी शेयर्स को बाजार के खुलने और बंद होने के तय समय के अनुसार बेच या खरीद सकते हैं। एवं 24 X 7 शेयर्स की निगरानी भी कर सकते हैं।

जोखिम की सम्भावना –
1. कम समय में शेयर्स में निवेश अस्थिर और अप्रत्याशित हो सकता है। लेकिन लम्बे समय के लिए अच्छे स्टॉक्स में निवेश पैसे को कई गुना बढ़ा सकता है।
2. स्टॉक्स का वर्त्तमान मूल्य, निवेश किये गए मूल्य से कम भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में घाटा हो सकता है। इसलिए जोखिम गणना करना अति आवश्यक है। इसका अर्थ है कि आप किस स्तर तक वित्तीय हानि झेल सकते हैं। वर्तमान स्थिति के अनुसार अधिक घाटा होने की स्थिति में स्टॉक को बेच सकते हैं।
3. आपके नियंत्रण से बाहर के कारक अक्सर इक्विटी को प्रभावित कर सकते हैं जैसे अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल में उतार- चढाव आदि।

शेयर बाजार में निवेश जोखिम के अधीन है अतः निवेश करने से पहले कंपनियों का विश्लेषण अच्छे से कर लें। कंपनियों का विश्लेषण करने के लिए किसी पेशेवर की सलाह ले सकते हैं। लेकिन निवेश के लिए स्टॉक्स चुनने का फैसला पूर्णतः स्वयं के विवेक और जिम्मेदारी से लें। स्टॉक्स चुनाव के लिए किसी अन्य की सलाह आपको वित्तीय हानि पहुंचा सकती है।

4. अचल संपत्ति (रियल एस्टेट) निवेश

अचल संपत्ति में निवेश , पूंजी की मूल्यवृद्धि का एक पारम्परिक तरीका है। अचल संपत्ति में निवेश दो तरीके से किया जा सकता है पहला है – प्लाट के रूप में , दूसरा है – फ्लैट के रूप में। (नोट : प्लॉट बिना किसी ढांचे के जमीन का एक टुकड़ा है, जबकि फ्लैट एक बहुमंजिला इमारत में किसी मंजिल पर तय शर्तानुसार निर्माण किया हुआ ढांचा है।)
आम तौर पर प्लॉट में निवेश को फ्लैट के मुकाबले अधिक वरीयता दी जाती है। क्योंकि फ्लैट में मूल्य-गिरावट (डेप्रिसिएशन) जैसे पहलु पर विचार किया जाता है। जबकि प्लाट के निवेश में वर्तमान दृष्टिकोण से समय के साथ मूल्यवृद्धि होना तय है। एक प्लॉट, निर्माण और संशोधन के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करता है यानी इसमें जरुरत के हिसाब से पुनर्निर्माण या रूपांतरण संभव है। , जबकि एक फ्लैट का लेआउट और आकार नहीं बदला जा सकता है। इसमें सबसे जरुरी बात यह है कि अचल संपत्ति में निवेश से पहले सभी सम्बंधित जरुरी दस्तावेजों का गहन निरीक्षण किया जाए।
अचल संपत्ति में निवेश प्राथमिक निवास के बजाय व्यावसायिक रूप यानी प्लाट या फ्लैट को किराये से दे देने के लिए भी किया जा सकता है जिससे यह (अचल संपत्ति) अतिरिक्त आय का स्रोत हो सकती है।
आम तौर पर रियल एस्टेट में निवेश के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। इसलिए हर किसी के लिए इसमें निवेश करना दूर की कौड़ी लगती थी। लेकिन REIT (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) आपको छोटी पूंजी के साथ रियल एस्टेट में निवेश का अवसर देता है। REIT में निवेश करके, निवेशक REIT की संपत्तियों से उत्पन्न राजस्व का एक निश्चित प्रतिशत प्राप्त करते हैं। क्योंकि REIT का सार्वजनिक रूप से स्टॉक एक्सचेंज पर कारोबार होता है, निवेशक आसानी से REITs खरीद और बेच सकते हैं।
REIT में निवेश के लिए आपके पास डीमैट अकाउंट होना अनिवार्य है। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए NISM (राष्ट्रीय प्रतिभूति बाजार संसथान) पर जाएँ।

5. पब्लिक प्रोविडेंड फण्ड (पीपीएफ) / सार्वजनिक भविष्य निधि

पीपीएफ खाता या सार्वजनिक भविष्य निधि योजना सबसे लोकप्रिय दीर्घकालिक बचत-सह-निवेश उत्पादों में से एक है, जिसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक सुरक्षा, रिटर्न और कर बचत का मिलाजुला संयोजन है। पीपीएफ पहली बार जनता के लिए वर्ष 1968 में वित्त मंत्रालय के राष्ट्रीय बचत संस्थान (NSI) द्वारा पेश किया गया था।
सार्वजनिक भविष्य निधि या पीपीएफ एक लम्बे समय की निवेश योजना के अंतर्गत आने वाली निवेश व्यवस्था है , जिसमें निवेशित राशि की 15 वर्षों (या इसे बढ़ाया भी जा सकता है) के लिए परिपक्वता (मेच्यूरिटी) अवधि होती है यानि आप अपनी पूरी निवेशित राशि को 15 वर्षों के बाद ही निकल सकते हैं। हालाँकि निवेशक पीपीएफ के शुरू होने 7 वर्षों बाद आपातकालीन कारणों से आंशिक निकासी कर सकते है।

नियम एवं शर्तें –
1. इस योजना के अंतर्गत एक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम 500 रु. और अधिकतम 1,50,000 रु. निवेश कर सकते हैं।
2. पीपीएफ का न्यूनतम कार्यकाल 15 वर्ष है। आप चाहें तो इसे 5 साल के समयावधि में बढ़ा सकते हैं।
3. कोई भी भारतीय नागरिक इस योजना का लाभ ले सकता है।
4. आप अपने पीपीएफ खाते पर तीसरे और पांचवें वर्ष के बीच ऋण (लोन) ले सकते हैं और सातवें वर्ष के बाद केवल आपात स्थिति के लिए आंशिक निकासी
कर सकते हैं।
5. आप किसी भी मान्यता प्राप्त बैंक में या पोस्ट ऑफिस में केवल 100 रुपये से पीपीएफ खाता खोल सकते हैं। आप हर महीने या एकमुश्त (इकट्ठी धन राशि) नकद, चेक, डीडी या ऑनलाइन ट्रांसफर के माध्यम से राशि जमा कर सकते हैं।
6. आपको हर साल न्यूनतम 500 रुपये अनिवार्य रूप से जमा करना होगा।

फायदे –
1. पीपीएफ निवेश योजना में निवेश का एक अन्य प्रमुख लाभ इसमें मिलने वाले कर लाभ हैं। पीपीएफ ग्राहक आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80 सी के तहत एक वित्तीय वर्ष में किए गए निवेश पर 1.5 लाख रुपये तक कर (टैक्स) कटौती लाभ का दावा कर सकते हैं।
2. भारत सरकार पीपीएफ निवेश की सुरक्षा की गारंटी और निवेश पर आकर्षक ब्याज दर प्रदान करती है। इसलिए यह एक सुरक्षित सेवानिवृत्त योजना (रिटायरमेंट प्लान) है।

मेरा मानना है कि यह एक जोखिम रहित योजना होने के कारण इसमें रिटर्न तुलनात्मक रूप से कम होता है। इसे बस एक रिटायरमेंट प्लान के रूप में देखना चाहिए।

6. फिक्स्ड डिपाजिट (एफ डी) / सावधि जमा निवेश योजना

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